Priyanka Verma

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लेखनी प्रतियोगिता - सम्मान

सम्मान


आशा जी उम्र के साठ वसंत देख चुकी हैं। एक भरे पूरे परिवार की मुखिया हैं आशा जी। पतिदेव के जाने के बाद कितनी मुश्किलों का सामना कर अपने दोनों बेटों को पढ़ाया लिखाया, ऊंचे पदों तक पहुंचाया। सही समय पर दो समझदार सुशील लड़कियों को अपने घर की बहू बनाया। 
आशा जी अब निश्चिंत हो अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहती हैं।

एक दिन उन्होंने पूरे परिवार को हॉल में बुलाया। सभी लोग थोड़े से हैरान थे। सब हॉल में बैठ गए। अचानक सामने उनके पारिवारिक वकील आते हुए नज़र आए। 

आशा जी ने आगे बढ़कर उनका अभिवादन किया और उनको आदर सहित बैठने को कहा। छोटी बहू चाय नाश्ता देकर जाने लगी तो आशा जी ने उसे वहीं रुकने को बोला।

बड़े बेटे ने पूछा," मां, ये सब क्या है?"

आशा जी ने कहा," थोड़ा सब्र करो, बेटा। अभी तुम सबको सब कुछ पता चल जाएगा।"

उसके बाद आशा जी ने वकील से कहा, " वकील साहब, आप अपनी बात शुरू कीजिए। सब बड़ी बेसब्री से आपके यहां होने का कारण जानना चाहते हैं।" 

वकील साहब ने सबकी तरफ देखते हुए बोलना शुरू किया, 
" नमस्कार, आप सबकी उत्सुकता को कम करते हुए मैं अपना काम शुरू करता हूं। आशा जी ने अपनी सारी जमीन जायदाद का बंटवारा करते हुए एक वसीयत तैयार करवाई है। उसी के बारे में बताने के आज आप सभी को यहां बुलाया है।"

वसीयत का नाम सुनते ही वहां मौजूद सब के चेहरे पर कुछ सवाल नज़र आए। बड़ा बेटा कुछ बोलता इससे पहले ही आशा जी उसे इशारे से चुप रहने को कहा, और वकील साहब को अपनी बात पूरी करने को बोला।

वकील साहब ने एक फाइल से कुछ पेपर्स निकाले और पढ़ना शुरू किया। आशा जी 5,00,000 रुपए अपने नाम रखकर बाकी सारी संपत्ति बराबर बराबर अपने दोनों बेटों के बीच बांट दी और जेवर दोनों बहुओं के बीच। 
दो खास बातें जो उस वसीयत में लिखी गई थी वो ये कि इस वसीयत के बनने के बाद अगर कोई भी इस वसीयत से असंतुष्ट होकर कोर्ट कचहरी के चक्कर काटेगा तो उसका हिस्सा मंदिर के ट्रस्ट के नाम ट्रांसफर हो जाएगा।
और दूसरी बात अगर कोई भी बेटा मां को अपने साथ नही रखना चाहता तो पहले ही साफ साफ शब्दों में बता दे। वे खुशी खुशी वृद्धाश्रम में जाकर रहेंगी। उनके नाम की संपति और उनके द्वारा पहना हुआ जेवर अंत में उसी वृद्धाश्रम के नाम हो जाएगा, नहीं तो जिस बेटे के साथ वे रहेंगी उनका हिस्सा उसमे शामिल होगा।

पूरी वसीयत सुनने के बाद दोनों बेटे और बहुएं उनसे बोले, " मां, ये सब आपने क्यों किया? क्या आपको अपनी परवरिश पर भरोसा नही है। "

आशा जी बोलीं," बच्चों, तुम पर मुझे पूरा विश्वास है, पर पूरी जिंदगी मैं जिस सम्मान के साथ जीती आई हूं, अपने अंतिम समय में उसी सम्मान के साथ मरना चाहती हूं।" ऐसा बोलते हुए आंसू की दो बूंद उनकी पलकों के किनारों पर छलक आईं।


आशा जी ने वकील साहब को आदर सहित विदा किया और एक संतुष्ट मन के साथ अपने परिवार में फिर से रम गईं।।


प्रियंका वर्मा
2/1/23

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7 Comments

Behtarin rachana 👌

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shweta soni

03-Jan-2023 06:57 PM

Behtarin rachana 👌

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Priyanka Verma

03-Jan-2023 12:51 PM

बहुत बहुत आभार 🙏🎉💐💐💐💐🎉🙏🎉💐

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